श्रीशुक उवाच
इत्युक्त: स हसन्नाह वाञ्छात: प्रतिगृह्यताम् ।
वामनाय महीं दातुं जग्राह जलभाजनम् ॥ २८ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने फिर कहा: जब भगवान् ने बलि महाराज से इस प्रकार कहा तो बलि हँस पड़े और बोले, "अच्छा, जो भी इच्छा हो प्राप्त करो।" इसके बाद वामनदेव को इच्छित भूमि देने के संकेत में उन्होंने अपने कमंडल को उठाया।