श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.19.26 
 
 
यद‍ृच्छालाभतुष्टस्य तेजो विप्रस्य वर्धते ।
तत् प्रशाम्यत्यसन्तोषादम्भसेवाशुशुक्षणि: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  वह ब्राह्मण जो उपलब्ध परिस्थितियों से ही संतुष्ट रहता है, उसकी आध्यात्मिक शक्ति निरंतर बढ़ती रहती है, लेकिन जो असंतोष रखता है उसकी आध्यात्मिक शक्ति उसी प्रकार कम हो जाती है जैसे आग पर पानी छिड़कने से उसकी ज्वलन शक्ति कम हो जाती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.