श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.19.25 
 
 
पुंसोऽयं संसृतेर्हेतुरसन्तोषोऽर्थकामयो: ।
यद‍ृच्छयोपपन्नेन सन्तोषो मुक्तये स्मृत: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  भौतिक अस्तित्व कामना पूर्ति और अधिक धन कमाने की लालसा में असंतोष पैदा करता है। यह भौतिक जीवन का कारण बनता है, जो जन्म और मृत्यु से भरा है। लेकिन जो व्यक्ति अपने भाग्य से प्राप्त वस्तुओं से संतुष्ट रहता है, वह इस भौतिक जगत से मुक्ति पाने के योग्य होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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