पुंसोऽयं संसृतेर्हेतुरसन्तोषोऽर्थकामयो: ।
यदृच्छयोपपन्नेन सन्तोषो मुक्तये स्मृत: ॥ २५ ॥
अनुवाद
भौतिक अस्तित्व कामना पूर्ति और अधिक धन कमाने की लालसा में असंतोष पैदा करता है। यह भौतिक जीवन का कारण बनता है, जो जन्म और मृत्यु से भरा है। लेकिन जो व्यक्ति अपने भाग्य से प्राप्त वस्तुओं से संतुष्ट रहता है, वह इस भौतिक जगत से मुक्ति पाने के योग्य होता है।