श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  8.19.24 
 
 
यद‍ृच्छयोपपन्नेन सन्तुष्टो वर्तते सुखम् ।
नासन्तुष्टस्त्रिभिर्लोकैरजितात्मोपसादितै: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य को अपने भाग्य से जो कुछ प्राप्त होता है, उसी में संतोष करना चाहिए क्योंकि असंतोष से कभी भी सुख नहीं मिल सकता है। एक ऐसा व्यक्ति जो आत्म-संयमी नहीं है, वह तीनों लोकों को पाकर भी सुखी नहीं होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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