श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  8.19.22 
 
 
त्रिभि: क्रमैरसन्तुष्टो द्वीपेनापि न पूर्यते ।
नववर्षसमेतेन सप्तद्वीपवरेच्छया ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि मैं तीन पग भूमि से सन्तुष्ट न होऊँ तो निश्चित ही नौ वर्षों से युक्त सातों द्वीपों में से एक द्वीप मिलने पर भी मैं सन्तुष्ट न हो सकूँगा। यदि मुझे एक द्वीप भी मिल जायेगा तो मैं अन्य द्वीपों को प्राप्त करने की इच्छा और आशा करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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