त्रिभि: क्रमैरसन्तुष्टो द्वीपेनापि न पूर्यते ।
नववर्षसमेतेन सप्तद्वीपवरेच्छया ॥ २२ ॥
अनुवाद
यदि मैं तीन पग भूमि से सन्तुष्ट न होऊँ तो निश्चित ही नौ वर्षों से युक्त सातों द्वीपों में से एक द्वीप मिलने पर भी मैं सन्तुष्ट न हो सकूँगा। यदि मुझे एक द्वीप भी मिल जायेगा तो मैं अन्य द्वीपों को प्राप्त करने की इच्छा और आशा करूँगा।