नान्यत् ते कामये राजन्वदान्याज्जगदीश्वरात् ।
नैन: प्राप्नोति वै विद्वान्यावदर्थप्रतिग्रह: ॥ १७ ॥
अनुवाद
हे समग्र ब्रह्माण्ड के नियंत्रक, राजा! यद्यपि आप अत्यंत उदार हैं तथा मुझे इच्छानुसार जितनी भूमि चाहिए, दे सकते हैं, किंतु मैं आपसे ऐसी कोई अनावश्यक वस्तु नहीं माँगना चाहता। यदि कोई विद्वान ब्राह्मण अन्यों से अपने आवश्यकतानुसार दान लेता है तो वह पापपूर्ण कर्मों में नहीं फँसता।