अपश्यन्निति होवाच मयान्विष्टमिदं जगत् ।
भ्रातृहा मे गतो नूनं यतो नावर्तते पुमान् ॥ १२ ॥
अनुवाद
उन्हें न देखकर हिरण्यकशिपु बोला : मैंने पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर डाली, लेकिन अपने भाई के हत्यारे विष्णु को कहीं नहीं ढूँढ पाया। अतः वह निश्चित रूप से उस स्थान पर चला गया होगा जहाँ से कोई नहीं लौट सकता (दूसरे शब्दों में, वह अब मर चुका होगा)।