श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  8.19.11 
 
 
स तन्निकेतं परिमृश्य शून्य-
मपश्यमान: कुपितो ननाद ।
क्ष्मां द्यां दिश: खं विवरान्समुद्रान्
विष्णुं विचिन्वन् न ददर्श वीर: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रभु विष्णु के घर को खाली देखकर हिरण्यकशिपु ने उनकी हर जगह तलाश शुरू कर दी। उन्हें न पाकर गुस्से में हिरण्यकशिपु ने ज़ोर से दहाड़ते हुए पूरे ब्रह्मांड, पृथ्वी, स्वर्ग, सभी दिशाओं, सभी गुफाओं और समुद्रों में ढूँढ़ा। लेकिन महान वीर हिरण्यकशिपु को विष्णु कहीं नहीं दिखे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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