स तन्निकेतं परिमृश्य शून्य-
मपश्यमान: कुपितो ननाद ।
क्ष्मां द्यां दिश: खं विवरान्समुद्रान्
विष्णुं विचिन्वन् न ददर्श वीर: ॥ ११ ॥
अनुवाद
प्रभु विष्णु के घर को खाली देखकर हिरण्यकशिपु ने उनकी हर जगह तलाश शुरू कर दी। उन्हें न पाकर गुस्से में हिरण्यकशिपु ने ज़ोर से दहाड़ते हुए पूरे ब्रह्मांड, पृथ्वी, स्वर्ग, सभी दिशाओं, सभी गुफाओं और समुद्रों में ढूँढ़ा। लेकिन महान वीर हिरण्यकशिपु को विष्णु कहीं नहीं दिखे।