एवं स निश्चित्य रिपो: शरीर-
माधावतो निर्विविशेऽसुरेन्द्र ।
श्वासानिलान्तर्हितसूक्ष्मदेह-
स्तत्प्राणरन्ध्रेण विविग्नचेता: ॥ १० ॥
अनुवाद
भगवान् वामनदेव ने आगे कहा: हे असुर राजा! यह निर्णय लेने के बाद भगवान् विष्णु अपने पीछे तेजी से दौड़ रहे अपने शत्रु हिरण्यकशिपु के शरीर में प्रवेश कर गये। सूक्ष्म शरीर में रहकर, जिसकी हिरण्यकशिपु कल्पना भी नहीं कर सकता था, चिंतामग्न भगवान् विष्णु हिरण्यकशिपु की श्वास के साथ उसके नथुने में प्रविष्ट हो गये।