श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  8.18.9-10 
 
 
सिद्धविद्याधरगणा: सकिम्पुरुषकिन्नरा: ।
चारणा यक्षरक्षांसि सुपर्णा भुजगोत्तमा: ॥ ९ ॥
गायन्तोऽतिप्रशंसन्तो नृत्यन्तो विबुधानुगा: ।
अदित्या आश्रमपदं कुसुमै: समवाकिरन् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  सिद्ध, विद्याधर, किन्नर, चारण, यक्ष, राक्षस, सुपर्ण, सर्पलोक के सर्वश्रेष्ठ और देवताओं के भक्त - इन सभी ने मिलकर अदिति के निवास पर फूलों की वर्षा की, और भगवान के गुणगान, उनकी प्रशंसा और नृत्य किया। उनकी आवाज पूरे घर को भर गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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