श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  8.18.32 
 
 
यद् वटो वाञ्छसि तत्प्रतीच्छ मे
त्वामर्थिनं विप्रसुतानुतर्कये ।
गां काञ्चनं गुणवद् धाम मृष्टं
तथान्नपेयमुत वा विप्रकन्याम् ।
ग्रामान् समृद्धांस्तुरगान् गजान् वा
रथांस्तथार्हत्तम सम्प्रतीच्छ ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ब्राह्मणपुत्र! ऐसा लगता है कि आप यहाँ मुझसे कुछ माँगने आए हैं। इसलिए, आप मुझसे जो चाहें वो ले सकते हैं। हे पूजनीय! आप मुझ से गाय, सोना, सजा हुआ घर, स्वादिष्ट खाने-पीने का सामान, पत्नी के रूप में ब्राह्मण कन्या, समृद्ध गाँव, घोड़े, हाथी, रथ या जो भी आपकी इच्छा हो, ले सकते हैं।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत अठारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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