अद्याग्नयो मे सुहुता यथाविधि
द्विजात्मज त्वच्चरणावनेजनै: ।
हतांहसो वार्भिरियं च भूरहो
तथा पुनीता तनुभि: पदैस्तव ॥ ३१ ॥
अनुवाद
हे ब्राह्मणपुत्र! आज की यज्ञ-अग्नि शास्त्रादेशानुसार प्रज्ज्वलित हुई है और आपके कमल चरणों से धुले जल से मैं अपने पापकर्मों से मुक्त हो गया हूँ। हे स्वामी! आपके छोटे कमल चरणों के स्पर्श से सारा संसार पवित्र हो गया है।