श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  8.18.3 
 
 
मधुव्रतव्रातविघुष्टया स्वया
विराजित: श्रीवनमालया हरि: ।
प्रजापतेर्वेश्मतम: स्वरोचिषा
विनाशयन् कण्ठनिविष्टकौस्तुभ: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  उनके सीने पर सुंदर फूलों की एक असाधारण माला लगी हुई थी और फूल बहुत सुगंधित होने के कारण मधुमक्खियों का एक बड़ा समूह उनके ऊपर शहद के लिए भिनभिनाता हुआ टूट पड़ा था। जब भगवान कौस्तुभ मणि को गले में पहनकर प्रकट हुए तो उनके तेज से प्रजापति कश्यप के घर का अंधेरा दूर हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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