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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार
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श्लोक 26
श्लोक
8.18.26
यजमान: प्रमुदितो दर्शनीयं मनोरमम् ।
रूपानुरूपावयवं तस्मा आसनमाहरत् ॥ २६ ॥
अनुवाद
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भगवान वामनदेव को देखते ही बलि महाराज परम हर्षित हुए और उन्होंने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उन्हें बैठने के लिए आसन प्रदान किया। भगवान के शरीर के सुंदर अंग उनकी आभा में चार चाँद लगा रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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