श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  8.18.24-25 
 
 
मौञ्‍ज्या मेखलया वीतमुपवीताजिनोत्तरम् ।
जटिलं वामनं विप्रं मायामाणवकं हरिम् ॥ २४ ॥
प्रविष्टं वीक्ष्य भृगव: सशिष्यास्ते सहाग्निभि: ।
प्रत्यगृह्णन्समुत्थाय सङ्‌क्षिप्तास्तस्य तेजसा ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  एक ब्राह्मण बालक के रूप में भगवान् वामनदेव मूँज की कमरबंद, जनेऊ, मृगचर्म का उत्तरीय वस्त्र और जटाधारी केश के साथ, उस यज्ञशाला में दाखिल हुए। उनकी तेजस्विता ने सभी पुरोहितों और उनके शिष्यों की चमक को कम कर दिया; वे अपनी-अपनी आसनों से खड़े हो गए और सबों ने प्रणाम करके, विधिपूर्वक उनका स्वागत किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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