श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  8.18.23 
 
 
इत्थं सशिष्येषु भृगुष्वनेकधा
वितर्क्यमाणो भगवान्स वामन: ।
छत्रं सदण्डं सजलं कमण्डलुं
विवेश बिभ्रद्धयमेधवाटम् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  जब भृगुवंशी पुरोहित और उनके अनुयायी कई तरह के तर्क-वितर्कों में उलझे हुए थे, तभी भगवान वामनदेव, अपने हाथों में छड़ी, छत्र और पानी से भरा कमंडल लिए, अश्वमेध यज्ञशाला में प्रवेश कर गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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