श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  8.18.22 
 
 
ते ऋत्विजो यजमान: सदस्या
हतत्विषो वामनतेजसा नृप ।
सूर्य: किलायात्युत वा विभावसु:
सनत्कुमारोऽथ दिद‍ृक्षया क्रतो: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा! वामनदेव के चमकीले तेज से बलि महाराज और सभा के सभी लोग तेजहीन हो गए। तब वे एक-दूसरे से पूछने लगे कि क्या साक्षात सूर्यदेव, सनत्कुमार या अग्निदेव यज्ञोत्सव को देखने आए हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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