ते ऋत्विजो यजमान: सदस्या
हतत्विषो वामनतेजसा नृप ।
सूर्य: किलायात्युत वा विभावसु:
सनत्कुमारोऽथ दिदृक्षया क्रतो: ॥ २२ ॥
अनुवाद
हे राजा! वामनदेव के चमकीले तेज से बलि महाराज और सभा के सभी लोग तेजहीन हो गए। तब वे एक-दूसरे से पूछने लगे कि क्या साक्षात सूर्यदेव, सनत्कुमार या अग्निदेव यज्ञोत्सव को देखने आए हैं?