श्रुत्वाश्वमेधैर्यजमानमूर्जितं
बलिं भृगूणामुपकल्पितैस्तत: ।
जगाम तत्राखिलसारसम्भृतो
भारेण गां सन्नमयन्पदे पदे ॥ २० ॥
अनुवाद
जब प्रभु ने सुना कि बलि महाराज भृगु वंश के ब्राह्मणों का संरक्षण लेकर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं, तो सर्वसम्पन्न प्रभु बलि महाराज पर दया दिखाने के लिए वहाँ चल पड़े। उनके प्रत्येक डग भरने पर पृथ्वी उनके भार से धँसने लगी।