श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 18: भगवान् वामनदेव : वामन अवतार  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.18.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्थं विरिञ्चस्तुतकर्मवीर्य:
प्रादुर्बभूवामृतभूरदित्याम् ।
चतुर्भुज: शङ्खगदाब्जचक्र:
पिशङ्गवासा नलिनायतेक्षण: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब ब्रह्माजी इस प्रकार भगवान् की महिमा का बखान कर चुके, तो भगवान् जो एक सामान्य प्राणी की तरह कभी नहीं मरते, अदिति के गर्भ से प्रकट हुए। उनके चार हाथ शंख, गदा, कमल और चक्र से सुशोभित थे। उन्होंने पीले वस्त्र धारण किए हुए थे और उनकी आँखें खिले हुए कमल की पंखुड़ियों जैसी लग रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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