श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  8.17.7 
 
 
प्रीत्या शनैर्गद्गदया गिरा हरिं
तुष्टाव सा देव्यदिति: कुरूद्वह ।
उद्वीक्षती सा पिबतीव चक्षुषा
रमापतिं यज्ञपतिं जगत्पतिम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज परीक्षित, देवी अदिति ने भयभीत वाणी और अपार प्रेम से सर्वोच्च देवता की स्तुति की। ऐसा लग रहा था मानो वह देवी लक्ष्मी के पति, सभी यज्ञों के उपभोक्ता और पूरे ब्रह्मांड के महान स्वामी और भगवान् को अपनी आँखों से निहार रही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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