श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  8.17.6 
 
 
सोत्थाय बद्धाञ्जलिरीडितुं स्थिता
नोत्सेह आनन्दजलाकुलेक्षणा ।
बभूव तूष्णीं पुलकाकुलाकृति-
स्तद्दर्शनात्युत्सवगात्रवेपथु: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  अदिति हाथ जोड़े चुपचाप खड़ी रहीं और प्रभु की प्रार्थना में असमर्थ रहीं। दिव्य आनंद के कारण उनकी आंखों में आंसू आ गए और उनकी देह के रोंगटे खड़े हो गए। चूंकि वे परमेश्वर को अपने सामने देख रही थीं, इसलिए उन्हें आनंद का अनुभव हुआ और उनका शरीर कांपने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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