श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.17.5 
 
 
तं नेत्रगोचरं वीक्ष्य सहसोत्थाय सादरम् ।
ननाम भुवि कायेन दण्डवत् प्रीतिविह्वला ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब आदिति के नेत्रों से भगवान स्वयं प्रकट हुए, तो वे दिव्य आनंद से इस कदर अभिभूत हो गईं कि वह तुरंत ही उठ खड़ी हुईं और फिर प्रभु को सादर प्रणाम करने के लिए एक छड़ी की तरह भूमि पर गिर पड़ीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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