श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  8.17.28 
 
 
त्वं वै प्रजानां स्थिरजङ्गमानां
प्रजापतीनामसि सम्भविष्णु: ।
दिवौकसां देव दिवश्‍च्युतानां
परायणं नौरिव मज्जतोऽप्सु ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रभु, आप समस्त चल या अचल जीवों के मूल उत्पन्नकर्ता हैं और आप प्रजापतियों के भी उत्पन्नकर्ता हैं। हे स्वामी! जिस प्रकार जल में डूबते हुए व्यक्ति के लिए नाव ही एकमात्र सहारा होती है उसी प्रकार आप इस समय अपने स्वर्ग-पद से वंचित देवताओं के एकमात्र आश्रय हैं।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत सत्रहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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