श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  8.17.27 
 
 
त्वमादिरन्तो भुवनस्य मध्य-
मनन्तशक्तिं पुरुषं यमाहु: ।
कालो भवानाक्षिपतीश विश्वं
स्रोतो यथान्त:पतितं गभीरम् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! आप तीनों लोकों के आरंभ, विकास और विनाश हैं और वेदों में आपको असीम शक्तियों के भंडार, सर्वोच्च पुरुष के रूप में जाना जाता है। हे स्वामी! जिस प्रकार लहरें गहरे जल में गिरने वाली टहनियों और पत्तियों को अपनी ओर खींच लेती हैं, उसी प्रकार परम शाश्वत काल के रूप में आप इस ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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