श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.17.26 
 
 
नमस्ते पृश्निगर्भाय वेदगर्भाय वेधसे ।
त्रिनाभाय त्रिपृष्ठाय शिपिविष्टाय विष्णवे ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सर्वव्यापी भगवान विष्णु! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ, क्योंकि आप सभी जीवों के दिलों के भीतर स्थित हैं। तीनों लोक आपकी नाभि के भीतर निवास करते हैं, फिर भी आप इन तीनों लोकों से परे हैं। आप पहले पृश्नि के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे। मैं उस परम स्रष्टा को नमन करता हूँ जिन्हें केवल वैदिक ज्ञान द्वारा ही जाना जा सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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