श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  8.17.23 
 
 
सोऽदित्यां वीर्यमाधत्त तपसा चिरसम्भृतम् ।
समाहितमना राजन्दारुण्यग्निं यथानिल: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, जैसे वायु दो काष्ठ के घर्षण से अग्नि प्रकट कर देती है, उसी तरह परमेश्वर में तल्लीन कश्यप मुनि ने अपनी शक्ति को अदिति के गर्भ में स्थानांतरित किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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