श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.17.21 
 
 
श्रीशुक उवाच
एतावदुक्त्वा भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत ।
अदितिर्दुर्लभं लब्ध्वा हरेर्जन्मात्मनि प्रभो: ।
उपाधावत् पतिं भक्त्या परया कृतकृत्यवत् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ऐसा कहकर भगवान उसी स्थान से अंतर्ध्यान हो गए। स्वयं भगवान के ही मुँह से यह वरदान पाकर कि वे उसके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे, अदिति अपने को बहुत सफल मानने लगी और अत्यंत भक्तिभाव से वह अपने पति के पास गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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