वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
»
अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार
»
श्लोक 21
श्लोक
8.17.21
श्रीशुक उवाच
एतावदुक्त्वा भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत ।
अदितिर्दुर्लभं लब्ध्वा हरेर्जन्मात्मनि प्रभो: ।
उपाधावत् पतिं भक्त्या परया कृतकृत्यवत् ॥ २१ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ऐसा कहकर भगवान उसी स्थान से अंतर्ध्यान हो गए। स्वयं भगवान के ही मुँह से यह वरदान पाकर कि वे उसके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे, अदिति अपने को बहुत सफल मानने लगी और अत्यंत भक्तिभाव से वह अपने पति के पास गई।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.