श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  8.17.20 
 
 
नैतत् परस्मा आख्येयं पृष्टयापि कथञ्चन ।
सर्वं सम्पद्यते देवि देवगुह्यं सुसंवृतम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  हे नारी! यदि कोई पूछे तो भी तुम्हें ये बात किसी को प्रकट नहीं करनी चाहिए। क्योंकि गोपनीय बात जब तक तुम अपने पास गुप्त रखती हो, तभी वो सफल होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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