श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 2-3
 
 
श्लोक  8.17.2-3 
 
 
चिन्तयन्त्येकया बुद्ध्या महापुरुषमीश्वरम् ।
प्रगृह्येन्द्रियदुष्टाश्वान्मनसा बुद्धिसारथि: ॥ २ ॥
मनश्चैकाग्रया बुद्ध्या भगवत्यखिलात्मनि ।
वासुदेवे समाधाय चचार ह पयोव्रतम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  अदिति ने पूरी तरह से एकाग्र और अविचलित ध्यान से भगवान का चिंतन किया। ऐसा करने से उन्होंने शक्तिशाली घोड़ों की तरह अपने मन और इंद्रियों को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया। उन्होंने अपने मन को भगवान वासुदेव पर केन्द्रित किया और इस तरह पयोव्रत नामक अनुष्ठान को पूरा किया।
 
 
 
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