श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  8.17.13 
 
 
तान्विनिर्जित्य समरे दुर्मदानसुरर्षभान् ।
प्रतिलब्धजयश्रीभि: पुत्रैरिच्छस्युपासितुम् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे देवी! अब मैं समझ पा रहा हूँ कि तुम युद्ध क्षेत्र में अपने शत्रुओं को पराजित करके, अपना राज्य और ऐश्वर्य दोबारा हासिल करके और अपने पुत्रों को पुनः प्राप्त करके, उन सभी के साथ मिलकर मेरी पूजा करना चाहती हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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