त एव नियमा: साक्षात्त एव च यमोत्तमा: ।
तपो दानं व्रतं यज्ञो येन तुष्यत्यधोक्षज: ॥ ६१ ॥
अनुवाद
अधोक्षज नामक परम भगवान को प्रसन्न करने की यह सर्वोत्तम प्रक्रिया है। यह सभी नियमों और विनियमों में श्रेष्ठ है, यह सर्वश्रेष्ठ तपस्या है, और दान और यज्ञ की सर्वश्रेष्ठ विधि है।