श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  8.16.53 
 
 
आचार्यं ज्ञानसम्पन्नं वस्त्राभरणधेनुभि: ।
तोषयेद‍ृत्विजश्चैव तद्विद्ध्याराधनं हरे: ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  इंसान को वेदों में पारंगत गुरु (आचार्य) को प्रसन्न रखना चाहिए और उनके सहायक पुरोहितों (जो होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्म कहे जाते हैं) को संतुष्ट रखना चाहिए। उन्हें वस्त्र, आभूषण और गायें प्रदान कर प्रसन्न किया जाना चाहिए। यही विष्णु-आराधन अनुष्ठान है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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