श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.16.5 
 
 
अपि वाकुशलं किञ्चिद् गृहेषु गृहमेधिनि ।
धर्मस्यार्थस्य कामस्य यत्र योगो ह्ययोगिनाम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे गृहस्थ में लिप्त मेरी पत्नी! यदि गृहस्थ धर्म, अर्थ और काम का ठीक-ठीक पालन करे तो उसके काम एक योगी की ही तरह श्रेष्ठ हो जाते हैं। मुझे चिंता होती है कि क्या इन नियमों के पालन करने में कोई गड़बड़ी हुई है?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.