श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  8.16.42 
 
 
जपेदष्टोत्तरशतं स्तुवीत स्तुतिभि: प्रभुम् ।
कृत्वा प्रदक्षिणं भूमौ प्रणमेद् दण्डवन्मुदा ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् मंत्र को मौन भाव से 108 बार जपना चाहिए और भगवान् की महिमा का गुणगान करना चाहिए। इसके बाद भगवान की परिक्रमा करनी चाहिए और अंत में अत्यंत प्रसन्नता और संतोष के साथ, डंडवत प्रणाम करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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