निवेदितं तद्भक्ताय दद्याद्भुञ्जीत वा स्वयम् ।
दत्त्वाचमनमर्चित्वा ताम्बूलं च निवेदयेत् ॥ ४१ ॥
अनुवाद
वह सारा प्रसाद या उसका कुछ भाग किसी वैष्णव को दे और फिर स्वयं भी कुछ प्रसाद ले। उसके बाद, देवता को जल चढ़ाए और फिर पान सुपारी चढ़ाकर फिर से भगवान की पूजा करे।