मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ, जो सूक्ष्म जीवों के अधिष्ठात्री, अजन्मे और समस्त लोकों के पिता स्वरूप हिरण्यगर्भ के रूप में विराजमान हैं। आपका शरीर जीवों के अंतर्निहित आत्म स्वरूप है, जिसमें से सभी योगशक्तियाँ उत्पन्न होती हैं। आप त्रिभुवन की रचना और प्रलय करने वाले हैं। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।