श्रीकश्यप उवाच
एतन्मे भगवान्पृष्ट: प्रजाकामस्य पद्मज: ।
यदाह ते प्रवक्ष्यामि व्रतं केशवतोषणम् ॥ २४ ॥
अनुवाद
श्री कश्यप मुनि ने कहा: जब मैं संतान की इच्छा से आकुल हुआ तो मैंने कमल पुष्प से अवतरित ब्रह्माजी से कई प्रश्न पूछे। अब मैं तुम्हें वही विधि बताऊँगा जिसका उपदेश ब्रह्माजी ने मुझे दिया था जिससे भगवान केशव, जो परमपुरुष हैं, प्रसन्न होते हैं।