श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.16.2 
 
 
एकदा कश्यपस्तस्या आश्रमं भगवानगात् ।
निरुत्सवं निरानन्दं समाधेर्विरतश्चिरात् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  तब ध्यान की समाधि से उठन के बाद परम शक्तिशाली कश्यपमुनि कई दिनों के बाद जब घर लौटे तो देखा कि अदिति के आश्रम में न तो हर्ष है, न उल्लास।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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