श्रीअदितिरुवाच
भद्रं द्विजगवां ब्रह्मन्धर्मस्यास्य जनस्य च ।
त्रिवर्गस्य परं क्षेत्रं गृहमेधिन्गृहा इमे ॥ ११ ॥
अनुवाद
अदिति ने कहा: हे मेरे आदरणीय ब्राह्मण पति! सारे ब्राह्मण, गौएँ, धर्म और अन्य लोगों का कल्याण हो रहा है। हे मेरे घर के स्वामी! धर्म, अर्थ और काम—ये तीनों गृहस्थ जीवन में ही फलते-फूलते हैं, जिसके फलस्वरूप यह जीवन सौभाग्यपूर्ण होता है।