श्रीशुक उवाच
एवं पुत्रेषु नष्टेषु देवमातादितिस्तदा ।
हृते त्रिविष्टपे दैत्यै: पर्यतप्यदनाथवत् ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा! जब अदिति के पुत्रों, देवताओं का स्वर्गलोक से इस प्रकार लोप हो गया और उनके स्थान पर असुरों ने कब्ज़ा कर लिया, तो अदिति बिना किसी रक्षक के रह गई, मानो उसने विलाप करना शुरू कर दिया।