तब, शुक्राचार्य द्वारा दिए गए रथ पर सवार होकर सुंदर माला से सजे बलि महाराज ने अपने शरीर पर सुरक्षा कवच धारण किया, अपने-आपको बाणों से लैस किया, एक तलवार और तीरों से भरा तरकश लिया। जब वे रथ में आसन ग्रहण कर चुके तो सुनहरे कड़ों से सजी बाहों और माणिक्य मणि के कुंडल पहने हुए कानों सहित वे पूजनीय अग्नि की तरह चमक रहे थे।