श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  8.15.8-9 
 
 
अथारुह्य रथं दिव्यं भृगुदत्तं महारथ: ।
सुस्रग्धरोऽथ सन्नह्य धन्वी खड्‌गी धृतेषुधि: ॥ ८ ॥
हेमाङ्गदलसब्दाहु: स्फुरन्मकरकुण्डल: ।
रराज रथमारूढो धिष्ण्यस्थ इव हव्यवाट् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  तब, शुक्राचार्य द्वारा दिए गए रथ पर सवार होकर सुंदर माला से सजे बलि महाराज ने अपने शरीर पर सुरक्षा कवच धारण किया, अपने-आपको बाणों से लैस किया, एक तलवार और तीरों से भरा तरकश लिया। जब वे रथ में आसन ग्रहण कर चुके तो सुनहरे कड़ों से सजी बाहों और माणिक्य मणि के कुंडल पहने हुए कानों सहित वे पूजनीय अग्नि की तरह चमक रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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