एवं स विप्रार्जितयोधनार्थ-
स्तै: कल्पितस्वस्त्ययनोऽथ विप्रान् ।
प्रदक्षिणीकृत्य कृतप्रणाम:
प्रह्लादमामन्त्र्य नमश्चकार ॥ ७ ॥
अनुवाद
ब्राह्मणों के कहे अनुसार विशेष अनुष्ठान कर लेने तथा ब्राह्मणों की अनुकम्पा से युद्ध के लिए आवश्यक सामग्रियाँ प्राप्त कर लेने के पश्चात्, महाराज बलि ने ब्राह्मणों की परिक्रमा की और उनको प्रणाम किया। उन्होंने प्रह्लाद महाराज को भी प्रणाम किया।