श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  8.15.6 
 
 
धनुश्च दिव्यं पुरटोपनद्धं
तूणावरिक्तौ कवचं च दिव्यम् ।
पितामहस्तस्य ददौ च माला-
मम्‍लानपुष्पां जलजं च शुक्र: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  एक सुनहरा धनुष, अमोघ बाणों से सजे दो तरकस और दिव्य कवच भी प्रकट हुए। बलि महाराज के पितामह प्रह्लाद महाराज ने उन्हें कभी न झड़ने वाले फूलों की एक माला भेंट की और शुक्राचार्य ने उन्हें एक शंख भेंट किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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