धनुश्च दिव्यं पुरटोपनद्धं
तूणावरिक्तौ कवचं च दिव्यम् ।
पितामहस्तस्य ददौ च माला-
मम्लानपुष्पां जलजं च शुक्र: ॥ ६ ॥
अनुवाद
एक सुनहरा धनुष, अमोघ बाणों से सजे दो तरकस और दिव्य कवच भी प्रकट हुए। बलि महाराज के पितामह प्रह्लाद महाराज ने उन्हें कभी न झड़ने वाले फूलों की एक माला भेंट की और शुक्राचार्य ने उन्हें एक शंख भेंट किया।