श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  8.15.34 
 
 
तं विश्वजयिनं शिष्यं भृगव: शिष्यवत्सला: ।
शतेन हयमेधानामनुव्रतमयाजयन् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  भृगु के ब्राह्मण वंशज, अपने शिष्य की विश्वविजय से प्रसन्न होकर, उसे अब एक सौ अश्वमेघ यज्ञ करने में लगा दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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