श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  8.15.32 
 
 
एवं सुमन्त्रितार्थास्ते गुरुणार्थानुदर्शिना ।
हित्वा त्रिविष्टपं जग्मुर्गीर्वाणा: कामरूपिण: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: इस प्रकार देवताओं ने बृहस्पति के उपदेश को अपने हित में मानते हुए तुरंत उसकी आज्ञा स्वीकार कर ली। उन्होंने अपनी इच्छानुसार रूपों को धारण किया और स्वर्गलोक को छोड़कर इस प्रकार तितर-बितर हो गए कि असुरों की दृष्टि उन पर न पड़े।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.