श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.15.26 
 
 
नैनं कश्चित् कुतो वापि प्रतिव्योढुमधीश्वर: ।
पिबन्निव मुखेनेदं लिहन्निव दिशो दश ।
दहन्निव दिशो द‍ृग्भि: संवर्ताग्निरिवोत्थित: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  कोई भी कहीं भी बलि की इस विशाल सेना का मुकाबला नहीं कर सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि बलि अपने मुंह से पूरे ब्रह्मांड को पी जाना चाहता है, अपनी जीभ से दसों दिशाओं को चाट जाना चाहता है और अपने नेत्रों से हर दिशा में आग लगाना चाहता है। निस्संदेह, वह प्रलयंकारी अग्नि संवर्तक के समान उठ खड़ा हुआ है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.