श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  8.15.22 
 
 
यां न व्रजन्त्यधर्मिष्ठा: खला भूतद्रुह: शठा: ।
मानिन: कामिनो लुब्धा एभिर्हीना व्रजन्ति यत् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  जो पापी, ईर्ष्यालु, अन्य जीवों के प्रति उग्र, धूर्त, मिथ्याभिमानी, कामी या लालची थे उनका उस नगर में प्रवेश वर्जित था। वहाँ के निवासी इन दोषों से सर्वथा मुक्त थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.