यां न व्रजन्त्यधर्मिष्ठा: खला भूतद्रुह: शठा: ।
मानिन: कामिनो लुब्धा एभिर्हीना व्रजन्ति यत् ॥ २२ ॥
अनुवाद
जो पापी, ईर्ष्यालु, अन्य जीवों के प्रति उग्र, धूर्त, मिथ्याभिमानी, कामी या लालची थे उनका उस नगर में प्रवेश वर्जित था। वहाँ के निवासी इन दोषों से सर्वथा मुक्त थे।