श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.15.21 
 
 
मृदङ्गशङ्खानकदुन्दुभिस्वनै:
सतालवीणामुरजेष्टवेणुभि: ।
नृत्यै: सवाद्यैरुपदेवगीतकै-
र्मनोरमां स्वप्रभया जितप्रभाम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  नगरी मृदंग, शंख, दमामे, वंशी और तारों वाले सुरीले वाद्ययंत्रों के सामूहिक संगीत से गूंज रही थी। वहाँ निरंतर नृत्य चलता रहता था और गंधर्वगण गाते रहते थे। इन्द्रपुरी की सुंदरता का सामंजस्य छटा से भी बढ़कर था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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