मुक्तावितानैर्मणिहेमकेतुभि-
र्नानापताकावलभीभिरावृताम् ।
शिखण्डिपारावतभृङ्गनादितां
वैमानिकस्त्रीकलगीतमङ्गलाम् ॥ २० ॥
अनुवाद
युगल नगरी मोतियों से सजे हुए चंदोवों की छाया से ढकी हुई थी! मंदिरों के गुंबदों पर मोतियों और सोने की पताकाएं लहरा रही थीं। शहर में हमेशा मोरों, कबूतरों और भौरों की आवाजें गूंजती रहती थीं! उसके ऊपर, सुंदर महिलाओं से भरे विमान उड़ान भर रहे थे, जो लगातार मधुर गीत गा रहे थे जो कानों को अच्छे लगते थे।