श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 15: बलि महाराज द्वारा स्वर्गलोक पर विजय  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.15.15 
 
 
रुक्‍मपट्टकपाटैश्च द्वारै: स्फटिकगोपुरै: ।
जुष्टां विभक्तप्रपथां विश्‍वकर्मविनिर्मिताम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  उसके दरवाज़े ठोस सोने की प्लेटों से बने थे और फाटक उत्कृष्ट संगमरमर के थे। ये सभी विभिन्न जनमार्गों से जुड़े थे। पूरी नगरी का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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